मालवा-दर्पण न्यूज/आगर-मालवा। साथियों आज विश्व पर्यावरण दिवस है। हमने हर साल प्रकृति को पर्यावरण की दृष्टि से हरा-भरा रखने के बड़े-बड़े वादे किए, लंबे-चौड़े लेख लिखे। अनेक संवाद गोष्ठियों का आयोजन किया। सरकारों ने करोड़ों रुपए खर्च कर डाले, किंतु हम पर्यावरण के क्षेत्र में वांछित उपलब्धि हासिल नहीं कर सके। इसका सबसे बड़ा कारण हम प्रकृति से कई गुना अधिक प्रदूषित हो गए है। 60 दिन के लॉकडाउन के बाद प्रकृति की अनेक खूबूरत झलकियां हमें देखने को मिली है। प्रकृति प्रदूषण मुक्त दिखाई दे रही है। पंजाब के जालंधर शहर से 200 किमी दूर पर्वत शृंखला साफ दिखाई दे रही है। आसमान साफ नीला दिखाई दे रहा है। गंगा का पानी स्वच्छ हो चला है। पशु पक्षी स्वछंद कलरव कर रहे है। कुल मिलाकर प्रकृति का 60 दिनों में स्वछंद स्वरूप सामने आने लगा है। बड़े दु:ख की बात है कि इन 60 दिनों में हम नहीं सुधर सके है। तन से लॉकडाउन होने के बाद भी मन की बेइमानी पर कंट्रोल नहीं कर पाए। उसी का परिणाम है कि हमने दोगुने दामों पर वस्तुओं का विक्रय किया। मजबूर मजदूर गरीबों के शोषण में हमने कोई कसर न छोड़ी। इन 60 दिनों की अनेक मन को झकझोर देने वाली तस्वीरों के जवाबदार भी हममें से ही है। कहने का अर्थ हम प्रकृति से कई गुना अधिक प्रदूषित हो गये है। इसी कारण प्रकृति तो 60 दिनों में प्रदूषण मुक्त दिखाई देने लगी, जबकि हम पर इस लॉकडाउन अवधि का कोई असर नहीं हुआ इतना ही नहीं और इन दो माह में हमने अपनी मानवता की सेवा धारणा को कहीं न कहीं कलंकित अवश्य किया है। अभी कुछ नहीं बिगड़ा। सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते। बस जरूरत है चंचल लालची मन को लॉकडाउन करने की। फिर हम भी प्रकृति जैसे ही स्वच्छंद हो जाएंगे। इस दिन संकल्प भी ले कि हम एक पेड़ अवश्य लगाए और उसके पालन पोषण की जवाबदारी भी ले।
विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष : प्रकृति से कई गुना अधिक प्रदूषित हो गए है हम