ओछी राजनीति की नहीं भाइचारे की आस लगा रही भारत माता अपने सपूतों से


यह फोटो काल्पनिक नहीं, हकीकत यह है आज की 

यह वृद्ध दंपती बलदेव पिता रुघनाथ इनकी पत्नी साथ उम्र दोनों की 70 पार। दो रोटी के जुगाड़ के लिये सुबह से जंगल निकल जाते है। घर अर्जुन नगर के पीछे है। छोटा-सा पर खाना बनाने के लिए गैस का साधन नहीं है। जंगल से लकड़ी लाकर भोजन पकाने की जुगाड़ में एक दोपहर हो जाता है इन्हें। ये दोनों दंपती की बात नहीं है ऐसे हजारों लाखो बे सहारा परिवार है हमारे देश में। आजादी के 72 साल बाद भी हम इन गरीबों की व्यवस्था नहीं कर पाए है। वादे तो हम बड़े-बड़े करते है पर वे केवल वादे बनकर रह जाते है। गरीबी मिटाने के लिए करोड़ों की योजना बनाते है। करोड़ो खर्च होने के बाद भी गरीबी वहीं रह जाती है। हां गरीब जरूर दम तोड़ देता है। लोकतंत्र के नाम पर इन गरीबों के साथ किए जाने वाले खिलवाड़ का ही परिणाम है आज पूरा विश्व महामारी की चपेट में है। हम में से कुछ स्वार्थी लोगों की महत्वाकांक्षा के कारण पूरा मानव समाज त्रासदी झेल रहा है। इतना ही नहीं इस महान संकट की घड़ी में मानवता को ताक पर रखकर अभी भी हम एक दूसरे को राजनीति में पटकनी देने की मानसिकता नहीं छोड़ पा रहे है। जब हमें आपस में प्रेम भाइचारे की महती जरुरत है उस समय भी हम एक-दूसरे को परास्त करने की भावना मन में लिए बैठे है। सोचो हमने क्या अमृत का पान कर लिया है क्या जिससे हम अमर हो गये है। मानव जीवन छोटा-सा है आज नहीं तो कल हमे संसार छोड़कर जाना ही है तो क्यों न संसार से जाने से पहले हम अपने मन में भरे जहर को नष्ट कर आपसी प्रेम के संबंध बनाए। ओछी राजनीति से उपर उठकर  स्वच्छ-स्वस्थ राजनीति का मार्ग अपनाए। एक-दूसरे के अहित के साथ  सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की भावना का विकास कर आने वाली पीड़ी के लिए स्वच्छ-स्वस्थ राजनीति वातावरण तैयार कर सके। साथ ही अनेक जरुरतमंदों की ईमानदारी से सेवा कर सकें। 
चूंकि ऐसे अनेक परिवार आज भी राह देख रहे है कोई आयेगा हमारी सहायता को।