मानवता की असली परीक्षा


रामेश्वर कारपेंटर
बड़े भाग मानुस तन पावा।
सुर दुर्लभ सद् ग्रंथ ही गावा।।
कहने का अर्थ है मानव जीवन बड़ी कठिन तपस्या के बाद ही मिलता है। देवता भी मनुष्य जन्म के लिए तरसते है। ऐसे मनुष्य जीवन को पाने के बाद ज्ञानी लोग उस जीवन को परहित में लगाकर जीवन की सार्थकता सिद्ध करने में लग जाते है, किंतु कुछ लोग स्वार्थ वश  इस जीवन का उपयोग केवल अपने परिवार तक ही सीमित कर लेते है। मनुष्य की असली परीक्षा संकट के समय होती है। चाहे वह संकट समाज का हो या राष्ट्र का। सच्चा मानव वही है जो संकट के समय समाज के राष्ट्र के काम आए, किंतु वर्तमान समय में मानव का नजरिया दिनो-दिन बदलता ही जा रहा है। स्वार्थवश वह अच्छे बुरे का भेद भी नहीं समझ पा रहा है। जहां एक ओर राष्ट्र में कोरोना संक्रमण की तबाही के संकेत मिलते जा रहे है प्रशासन एवं अनेक समाजसेवी लोग इस संकट की घड़ी में इस तबाही को रोकने के लिए दिन रात एक कर रहे है, साथ ही सबसे बड़ा कार्य उन गरीब जरूरतमंदों की मदद करने का कर रहे है, जिन्हें इस समय सच्ची मानवसेवा की आवश्यकता है, किंतु ऐसे समय में भी कुछ लोग समाजसेवा का व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए उपयोग कर मानवता को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। वे संकट की घड़ी में जहां एक ओर कोरोना संक्रमण के रूप में मौत सामने दिखाई दे रही है, किंतु वे अब भी ऐसा मानकर चल रहे है मानो उन्हें मोहल्ले से पार्षद का टिकट मिल गया है और उनके वोटर कहीं उनसे नाराज न हो जाएं, भले ही उन्हे जरूरत नहीं हो फिर भी उन्हें राशन सामग्री देना है, जबकि एक और कई गरीब लोग राशन सामग्री के लिए इंतजार इन महादेय की ओर ताक रहे हो, किंतु इन्हें तो मानवता से क्या लेना चुनाव जो जीतना है। ऐसे ही नजारे इस समय देश के अनेक नगरों के गली-मोहल्लों में देखने को मिल रहे है। निश्चित ही मानवता के लिए यह शर्म की बात है, जहां एक और समाज में बहुत बड़ा वर्ग संकट में है, वहीं हम अपने निजी स्वार्थों पर उनकी  अनदेखी कर अपनी स्वार्थ पूर्ति में लगे है। 
इस समय सच्चा मानव वह ही है जो इन सब बातों से ऊपर उठकर जरूरतमंदों की सेवा तन-मन-धन से करें, क्योंकि ऊपर वाला सब देख रहा है।