संपादक की कलम से...
आगर-मालवा. इतिहास साक्षी है जब-जब भी हमने प्रकृति से छेड़छाड़ करने की कोशिश की है उसके गंभीर परिणाम हमें भुगतने पड़े है। पचासों साल पहले जैसा कि हम बुजुर्गों से सुनते आए है ऐसी ही भयावह त्रासदी से हमारे बुजुर्ग गुजर चुके है। उनके अनुसार ऐसी महामारियों का यदि समय पर उपचार नहीं किया उनके रोकथाम के उपाय नहीं किए गए तो वह संभलने का मौका भी नहीं देती है। सब कुछ समाप्त कर देती है। ऐसा ही कहर विदेशों में कोरोना वायरस ने बरपाया है। इसका मूल कारण लगातार प्रकृति से छेड़छाड़ है। प्रकृति ने हमें खाने के लिए अनेकों प्रकार के खाद्य पदार्थों के साथ-साथ कई प्रकार के फल-फू्रट भी दिए है, किंतु पाश्चायत संस्कृति जिसे पाश्विक संस्कृति भी की जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी के फेर में हमारा बहुत बड़ा वर्ग पशु-पक्षियों का आहार करने लगा है, जो निश्चित ही आज नहीं तो कल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जैसा कि चीन, इटली एवं इरान में इसका प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। उसका मुख्य कारण वहां का खानपान ही है। जब तक हम प्रकृति के साथ-साथ छेड़छाड़ बंद नहीं करेंगे, त्रासदी आती रहेगी। इसका बहुत बड़ा उदाहरण कुछ वर्षों पहले केदारनाथ त्रासदी के रूप में हम देख चुके है। वहां लोगों ने अपनी महत्वाकांक्षा के कारण हरे-भरे पेड़ों को नष्ट कर नदियों के तटों को तहस-नहस कर बड़े-बड़े भवन, होटलों का निर्माण कर लिया था। बहुत बड़ी संख्या में लोग वहां पिकनिक मनाने लगे थे, किंतु प्रकृति ने अपने साथ ही छेड़छाड़ का जो बदला लिया उससे पूरा देश कांप गया था। आज तक भी वहां के हालात वैसे नहीं हुए है। हमें एवं आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखना है तो हमें अपनी महत्वकांक्षा पर नियंत्रित करना होगा और साथ ही हमारे थोड़े-से लालच के फेर में प्रकृति से की जाने वाली छेड़छाड़ से हमें बाज आना होगा। इसके साथ ही जो हमारे ग्रंथ है, जो हमें सदाचारी जीवन जीने की शिक्षा देते है, संयमित जीवन जीने की शिक्षा देते है उनका अनुसरण करना होगा और आने वाली पीढ़ी को भी उसका ज्ञान कराना होगा। यदि हम अब भी नहीं संभले तो एक समय ऐसा आएगा जब हमें पश्चाताप का भी समय भी नहीं मिल पाएगा।
एक कहावत है-
जान है तो जहां है
इस कहावत के अनुसार एक बात याद आती है जान बची तो लाखों पाए। कहने का तात्पर्य है सबसे पहले हमें हमारी, हमारे परिवार की, हमारे समाज की, हमारे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भरपूर प्रयास करना चाहिए। इसमें सबसे पहला प्रयास स्वस्थ रहने का है। यदि हम स्वस्थ रहेंगे तो ही अन्य कार्य कर पाएंगे। इसलिए सर्वप्रथम हम हमारे स्वास्थ्य की सावधानियों के प्रति सचैत रहे, क्योंकि जान है तो जहां है।
इतिहास से सबक नहीं लिया तो पश्चाताप का मौका भी नहीं मिलेगा हमें