रामेश्वर कारपेंटर
धरती माता है हमारी। हमें सब कुछ प्रदान कर हमारा पालन पोषण करने वाली धरती माता अपने सभी पुत्रों का लालन पालन समान भाव से करती आई है। हरी भरी वसुंधरा ने हमेशा अपने सपूतों को भी संपन्न रखा है। इतनी संपन्न वसुंधरा के पुत्र आज इतनी त्रासदी देख रहे है इसका कारण समझना भी आवश्यक है। माता के लिए अपने सभी पुत्र समान होते है। माता समान रूप से सबका पालन पोषण करती है, किंतु जब मां के बेटे आपस मे एक-दूसरे के दुश्मन बन जाए। स्वार्थ वश अपने भाईयों को कष्ट पहुंचाने लगे, उनके अस्तित्व को मिटाने लगे तब मां अपने उन बेटों की रक्षार्थ रौद्र रूप धारण कर लेती है और उसके परिणाम अत्यंत घातक होते है। कुछ बरसों पहले इसका उदाहरण हम केदारनाथ त्रासदी के रूप में देख चुके हैं। मां धरती पर पैदा होने वाले सभी पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़-पोधै, नदियां, पहाड़ सभी धरती माता के पुत्र है। हमारी सबसे बड़ी भूल है या हमारा स्वार्थ कहे हम केवल अपने को ही धरती माता का असली वारिस मानकर धरती माता के अन्य पुत्रों पर लगातार प्रहार करने में लगे हैं। हमने जंगलों को मैदान बना दिया। पहाड़ों को काटकर उनका अस्तित्व ही मिटाने की मानो कसम का रखी है। अपार अन्न का भंडार होते हुए निर्दोष वन्य प्राणियों का शिकार हम अपने उदर पूर्ति के लिए करने लगे है। पेड़ों पर चहचहाने वाले सुंदर खूबसूरत पक्षी हमारा आहार बनने लगे हैं हम यही नहीं रुक रहे है। अब तो हमने धार्मिक आध्यात्मिक केंद्रों को भी अपनी कभी न पूरी होने वाली महात्वाकांक्षा की खातिर विलासिता का ठिकाना बनाना शुरू कर दिया हैं। हमने कल-कल बहती नदियों को अपने निजी स्वार्थ के खातिर अवरुद्ध कर वहां भी आलीशान भवन बना लिये है। मां धरती को लगातार विस्फोट कर घायल करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है। प्रकृति द्वारा अनेक बार सचेत करने के बाद भी हम अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो गए कि हमें उसके संकेत भी समझ नहीं आ रहे है या तूं कहिये कि हम जानबूझ कर अपने स्वार्थ की खातिर उस ईश्वरीय आवाज को भी नहीं सुन पा रहे है जो हमारे मन में कही ना कही से लगातार हमें यह संदेश दे रही है किसी हम प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ न करें। हमारी तरह ही इस धरती पर अपना जीवन व्यापन करने वाले मूक पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं की अपनी उदर पूर्ति के लिए हत्या नहीं करे। धरती माता के उन अनेक सपूतों को अपने स्वार्थ का शिकार नहीं बनावे। यदि अब भी हम नहीं माने तो धरती माता प्रकृति माता के प्रकोप से हमें कोई नहीं बच पाएगा।
धरती मां के सपूतों को दु:खी कर हम कैसे सुखी रह सकते हैं