संपादक की कलम से
आगर-मालवा। देश में प्रधानमंत्री द्वारा कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंस (सामाजिक दूरी) बनाए रखने हेतु लॉकडाउन घोषित किया गया है, जिसमें देशवासियों से विशेष निवेदन किया गया है कि हम सब अपने-अपने घरों में रहे। इस आदेश का पालन कर इन 21 दिनों में हम चाहे तो देश में सुसंस्कारिक नवीन पीढ़ी का निर्माण कर सकते है। वर्तमान में आदमी अपने-अपने कार्य में इतना व्यस्त हो गया है कि अपने बच्चों के लिए एवं अपने परिवार के लिए थोड़ा-सा भी समय नहीं मिल पाता है। ऐसी दशा में व्यक्ति अपने परिवार, अपने बच्चों की उचित देखभाल नहीं कर पाता है। इसी का परिणाम है कि हमारी युवा पीढ़ी धीरे-धीरे संंस्कार विमुख होती जा रही है। अपनी मान मर्यादाओं को भूलकर पाश्चात संस्कृति की नकल करने लगी है। स्कूली की छुट्टी के बाद सड़कों पर निकलने वाले नौनिहालों की वार्तालाप सुन ले तो हम शर्मिंदा होने लगते है। कुछ इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग आम बात हो चली है। अब जबकि प्रत्येक परिवार को 21 दिन का समय घर पर रहने को मिला है, जिसमें लगभग एक सप्ताह बित चुका है। आने वाले 14-15 दिनों में यदि माता-पिता चाहे तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाकर अपने-अपने धर्म के अनुसार रामायण, महाभारत, कुरान, बाईबिल आदि के संदेश सुनाकर इन ग्रंथों में वर्णित अच्छी-अच्छी बातों को अपने बच्चों को बताकर निश्चित ही एक बहुत बड़ा कार्य कर सकते है। धर्म कोई सा भी हो। सभी धर्मों का मूल उद्देश्य सभ्य समाज का निर्माण करना होता है। अब ऐसी दशा में जब हमारी युवा पीढ़ी नैतिक स्तर पर कमजोर होती हुई दिखाई दे रही। इस समय का सदुपयोग कर उन्हें शास्त्र समत नैतिक मूल्यों की जानकारी देकर कुछ हद तक हम अपने बच्चों को सुसंस्कारिक होने की दशा में एक कदम और बढ़ा सकते है। यदि हमने ऐसा कर लिया तो आने वाले 15 दिनों बाद सड़कों पर हमें सुसंस्कारिक भारत देखने को मिलेगा।
देश में घोषित लॉक डाउन अवधि में हम कर सकते है सुसंस्कारिक नए भारत का निर्माण